रविवार, 19 जनवरी 2025

गीरिश कर्नाड: जीवन और साहित्य

 


गीरिश कर्नाड: जीवन और साहित्य

गीरिश कर्नाड (1938-2019) आधुनिक भारतीय साहित्य, रंगमंच और सिनेमा के उन स्तंभों में से एक थे जिन्होंने भारतीय नाट्य परंपरा और समकालीन लेखन को एक नई दिशा दी। कर्नाड न केवल एक महान नाटककार थे, बल्कि एक कुशल अभिनेता, निर्देशक और सामाजिक विचारक भी थे। उनकी रचनाएँ भारतीय समाज के जटिल मुद्दों, मानवीय भावनाओं और परंपरा तथा आधुनिकता के द्वंद्व को गहराई से उजागर करती हैं। यह लेख उनके जीवन और साहित्य पर केंद्रित है।

जीवन परिचय

गीरिश कर्नाड का जन्म 19 मई 1938 को महाराष्ट्र के माथेरान में हुआ था। उनके पिता रघुनाथ कर्नाड एक डॉक्टर थे और माँ कृष्णाबाई एक शिक्षिका थीं। बचपन से ही गिरीश ने विभिन्न संस्कृतियों का अनुभव किया, जिसने उनके लेखन और सोच को गहराई प्रदान की। उन्होंने धारवाड़ के कर्नाटक विश्वविद्यालय से गणित और सांख्यिकी में स्नातक किया। बाद में वे रोड्स स्कॉलरशिप के तहत इंग्लैंड गए और ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय से दर्शनशास्त्र, राजनीति और अर्थशास्त्र में उच्च शिक्षा प्राप्त की।

नाट्य साहित्य में योगदान

गीरिश कर्नाड ने अपने नाटकों के माध्यम से भारतीय नाट्य परंपरा को आधुनिक संदर्भों से जोड़ा। उनके नाटक मुख्यतः मिथकों, लोककथाओं और ऐतिहासिक पात्रों पर आधारित हैं, लेकिन इनमें समकालीन सामाजिक और व्यक्तिगत समस्याओं का गहरा विश्लेषण भी मिलता है।

मुख्य नाटक

  1. 'ययाति' (1961)
    यह उनका पहला नाटक था, जो महाभारत के ययाति प्रसंग पर आधारित है। इसमें उन्होंने मानव की स्वार्थपूर्ण इच्छाओं और जिम्मेदारियों के द्वंद्व को दर्शाया।

  2. 'तुगलक' (1964)
    यह कर्नाड का सबसे प्रसिद्ध नाटक है, जिसमें दिल्ली के सुल्तान मोहम्मद बिन तुगलक की कहानी को दर्शाया गया है। इसमें सत्ता, पागलपन, और आदर्शों के बीच संघर्ष को गहराई से प्रस्तुत किया गया है।

  3. 'हयवदन' (1971)
    कर्नाड का यह नाटक कन्नड़ लोककथा और थॉमस मान की 'द ट्रांसपोज्ड हेड्स' से प्रेरित है। यह नाटक पहचान, आत्मा और शरीर के द्वंद्व को उजागर करता है।

  4. 'नागमंडल' (1988)
    यह नाटक एक लोककथा पर आधारित है और विवाह, विश्वासघात और महिला की इच्छाओं पर चर्चा करता है।

  5. 'अग्नि और बरखा' (1995)
    यह नाटक ऋग्वेद की कहानियों से प्रेरित है। इसमें धर्म, जाति और समाज के सवाल उठाए गए हैं।

साहित्यिक विशेषताएँ

गीरिश कर्नाड के नाटक कई दृष्टियों से अद्वितीय हैं।

  1. मिथकों और लोककथाओं का आधुनिक संदर्भ
    कर्नाड ने अपने नाटकों में भारतीय मिथकों और लोककथाओं का इस्तेमाल करके समकालीन मुद्दों को उजागर किया। उदाहरण के लिए, 'हयवदन' में उन्होंने पहचान और अस्तित्व के सवाल उठाए।

  2. भाषा और संवाद
    कर्नाड ने अपने नाटकों में सरल और प्रभावी भाषा का उपयोग किया। उन्होंने कन्नड़ में लिखा, लेकिन उनके नाटक भारतीय भाषाओं और अंग्रेजी में अनुवादित होकर प्रसिद्ध हुए।

  3. नारीवादी दृष्टिकोण
    उनके नाटकों में महिलाओं के मुद्दों और उनकी भावनाओं को प्रमुखता दी गई है। 'नागमंडल' इसका उत्कृष्ट उदाहरण है।

  4. समाज और राजनीति
    'तुगलक' जैसे नाटकों में उन्होंने समाज और राजनीति के जटिल पहलुओं को उठाया।

सिनेमा में योगदान

गीरिश कर्नाड ने सिनेमा में भी महत्वपूर्ण योगदान दिया। वे एक प्रतिभाशाली अभिनेता, निर्देशक और पटकथा लेखक थे।

  1. अभिनय
    उन्होंने कई हिंदी, कन्नड़, और मराठी फिल्मों में अभिनय किया। 'मंथन', 'स्वामी', 'निशांत', 'गोधूलि' और 'इकबाल' जैसी फिल्मों में उनके अभिनय को सराहा गया।

  2. निर्देशन
    उन्होंने 'वंशवृक्ष', 'काडू' और 'उत्सव' जैसी फिल्मों का निर्देशन किया।

  3. पटकथा लेखन
    कर्नाड ने कई फिल्मों की पटकथा भी लिखी। उनकी पटकथाएँ सामाजिक और सांस्कृतिक मुद्दों पर केंद्रित होती थीं।

पुरस्कार और सम्मान

गीरिश कर्नाड को उनके साहित्यिक और फिल्मी योगदान के लिए अनेक पुरस्कार मिले।

  1. साहित्य अकादमी पुरस्कार (1972)
  2. ज्ञानपीठ पुरस्कार (1998)
  3. पद्म श्री (1974)
  4. पद्म भूषण (1992)
  5. राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार

विचारधारा और सामाजिक योगदान

कर्नाड केवल एक साहित्यकार नहीं थे, बल्कि एक सामाजिक चिंतक भी थे। वे धर्मनिरपेक्षता, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और सामाजिक न्याय के प्रबल समर्थक थे। उन्होंने समाज में व्याप्त अंधविश्वासों और रूढ़ियों के खिलाफ आवाज उठाई।

निष्कर्ष

गीरिश कर्नाड भारतीय साहित्य और कला के एक ऐसे व्यक्तित्व थे जिन्होंने अपनी लेखनी और कर्म से समाज को जागरूक किया। उनके नाटक, सिनेमा और विचार आज भी उतने ही प्रासंगिक हैं जितने उनके समय में थे। वे साहित्य और कला के माध्यम से हमें सोचने और समझने की नई दृष्टि प्रदान करते हैं। उनकी रचनाएँ और योगदान आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा स्रोत बने रहेंगे।

बुधवार, 15 जनवरी 2025

हिंदी साहित्य में 'उग्र'


 पंडित बेचन शर्मा 'उग्र' (1899–1967) हिंदी साहित्य के प्रसिद्ध लेखक, पत्रकार और व्यंग्यकार थे। वे अपने तीखे व्यंग्य, सामाजिक आलोचना और बोल्ड लेखन के लिए जाने जाते हैं। उनकी रचनाएँ हिंदी साहित्य में नई चेतना और सामाजिक परिवर्तन का प्रतीक मानी जाती हैं।

साहित्यिक योगदान

1. उपन्यास

पंडित बेचन शर्मा 'उग्र' ने हिंदी उपन्यास साहित्य में महत्वपूर्ण योगदान दिया। उनके उपन्यास समाज की विभिन्न समस्याओं को उजागर करते हैं।

  • "चॉकलेट" (1927): यह उपन्यास उनकी सबसे चर्चित कृति है, जिसमें समाज में व्याप्त पाखंड और आधुनिक जीवन की बुराइयों को उजागर किया गया है। यह अपने समय में विवादास्पद रहा लेकिन इसे व्यापक सराहना भी मिली।
  • "दिल्ली का दलाल": यह उपन्यास भ्रष्टाचार और नैतिक पतन को केंद्र में रखकर लिखा गया है।
  • "महात्मा के मूत" (आधार पर आधारित): यह एक व्यंग्यात्मक रचना थी, जो भारतीय समाज और राजनीति पर कटाक्ष करती है।

2. व्यंग्य और कथा साहित्य

उग्र जी व्यंग्य साहित्य के लिए विशेष रूप से प्रसिद्ध हैं। उनकी कहानियाँ और व्यंग्य समाज की विसंगतियों और विरोधाभासों को प्रकट करते हैं।

  • "कलम का पुजारी": इस कहानी संग्रह में साहित्य और पत्रकारिता की दुनिया की असलियत को उजागर किया गया है।
  • उनकी कहानियों और निबंधों में समाज के पाखंड और परंपराओं पर प्रहार मिलता है।

3. पत्रकारिता

पंडित बेचन शर्मा 'उग्र' ने हिंदी पत्रकारिता को नई ऊँचाइयों पर पहुँचाया। उन्होंने विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं का संपादन किया और सामाजिक मुद्दों पर लेख लिखे।

  • उनके संपादकीय लेख समाज सुधार और सामाजिक न्याय पर आधारित थे।
  • उन्होंने अपनी पत्रकारिता के माध्यम से समाज को जागरूक किया और वंचित वर्गों के अधिकारों की पैरवी की।

4. सामाजिक सुधारक दृष्टिकोण

उग्र जी का लेखन केवल साहित्यिक न होकर सामाजिक सुधार की ओर भी केंद्रित था। उनके लेखन में दलितों, महिलाओं और समाज के वंचित वर्गों के लिए एक विशेष संवेदनशीलता दिखाई देती है।

5. भाषा और शैली

  • उनकी भाषा में व्यंग्य और तीक्ष्णता थी।
  • उग्र जी ने सरल, प्रवाहपूर्ण और प्रभावी शैली में लिखा, जिससे उनकी रचनाएँ आम जनता के बीच भी लोकप्रिय हुईं।

विशेषताएँ

  • सामाजिक पाखंड, आर्थिक असमानता, और नैतिक पतन पर उनके तीखे व्यंग्य उनकी रचनाओं की विशेषता हैं।
  • उन्होंने अपने लेखन से समाज के प्रचलित ढर्रे को चुनौती दी और हिंदी साहित्य में नए विचारों का संचार किया।

समापन

पंडित बेचन शर्मा 'उग्र' ने अपने लेखन से हिंदी साहित्य को नई दिशा दी और समाज के वंचितों के लिए आवाज़ उठाई। उनका साहित्य आज भी प्रासंगिक है और पाठकों को सोचने पर मजबूर करता है। उनकी रचनाएँ हिंदी साहित्य में एक अमूल्य धरोहर हैं।

हरप्रसाद दास का साहित्यिक योगदान

 



1. काव्य रचना

हरप्रसाद दास का कवि रूप सबसे अधिक चर्चित और प्रभावशाली रहा। उनकी कविताओं में दर्शन, समाजशास्त्र और मनोविज्ञान का गहन समावेश मिलता है। उनकी कविताएँ मानव अस्तित्व की जटिलता, समाज में परिवर्तन, और आधुनिकता के विभिन्न पहलुओं को उजागर करती हैं।
उनकी प्रमुख काव्य कृतियाँ हैं:

  • देहर कविता
  • खैरूर कथा
  • आगान्तर
  • संकेत और प्रतिश्रुति

2. आलोचना और निबंध

  • उन्होंने उड़िया साहित्य में आलोचनात्मक लेखन को भी नई ऊँचाई दी। उनके निबंध और आलोचनात्मक कृतियाँ साहित्य के विभिन्न आयामों और जीवन के दार्शनिक दृष्टिकोणों पर केंद्रित होती थीं।
  • उनकी आलोचनाएँ गहन चिंतन और समाज के व्यापक परिप्रेक्ष्य को प्रस्तुत करती हैं।

3. विचारधारा और आधुनिकता

  • हरप्रसाद दास को आधुनिक उड़िया साहित्य का एक प्रमुख विचारक माना जाता है। उन्होंने साहित्य और समाज के बीच के संबंधों को अपने लेखन में गहराई से व्यक्त किया।
  • उनकी रचनाओं में औद्योगिक और शहरीकरण की चुनौतियों, मानवीय संबंधों की जटिलता, और पारंपरिक मूल्यों के विघटन जैसे विषय प्रमुखता से उभरते हैं।

4. प्रेरक प्रभाव

  • हरप्रसाद दास की काव्य शैली और दृष्टिकोण ने न केवल उड़िया साहित्य में बल्कि भारतीय साहित्य के समग्र परिदृश्य में भी महत्वपूर्ण प्रभाव डाला।
  • उनकी रचनाएँ पाठकों को आत्ममंथन के लिए प्रेरित करती हैं और जीवन के गहरे अर्थों को समझने का अवसर प्रदान करती हैं।

सम्मान और मान्यता

  • हरप्रसाद दास को उनके योगदान के लिए कई साहित्यिक पुरस्कारों से सम्मानित किया गया।
  • उनका लेखन साहित्य और दर्शन का अद्भुत मिश्रण है, जो उड़िया साहित्य को समृद्ध और वैश्विक स्तर पर प्रासंगिक बनाता है।

हरप्रसाद दास ने अपने लेखन के माध्यम से उड़िया साहित्य को समकालीन संदर्भों में प्रासंगिक बनाया। उनकी कृतियाँ न केवल साहित्यिक, बल्कि सामाजिक और दार्शनिक दृष्टिकोण से भी अत्यंत मूल्यवान हैं। उनका साहित्य आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा का स्रोत बना रहेगा।

ओमप्रकाश वाल्मीकि

 ओमप्रकाश वाल्मीकि (1950–2013) हिंदी दलित साहित्य के प्रमुख स्तंभों में से एक थे। उनका साहित्यिक योगदान समाज के शोषित, वंचित, और दलित वर्ग की पीड़ा, संघर्ष और आत्मसम्मान को आवाज़ देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। उन्होंने अपनी रचनाओं के माध्यम से समाज में जाति-आधारित भेदभाव और असमानता के खिलाफ एक सशक्त विरोध प्रकट किया।
1. आत्मकथा - "जूठन"
  • जूठन उनकी आत्मकथा है, जो हिंदी दलित साहित्य की सबसे चर्चित रचनाओं में से एक है। इसमें उन्होंने अपने जीवन के संघर्षों, अपमानजनक अनुभवों, और जातिवादी शोषण का जीवंत वर्णन किया है। यह पुस्तक दलित समाज के सामाजिक और सांस्कृतिक संघर्षों को समझने का एक अहम दस्तावेज़ मानी जाती है।
2. कविता संग्रह
  • सदियों का संताप: इस संग्रह में दलित समाज की व्यथा और उनकी आकांक्षाओं को प्रभावी ढंग से प्रस्तुत किया गया है।
  • बस! बहुत हो चुका: इसमें उनके विद्रोही तेवर और सामाजिक न्याय की मांग स्पष्ट रूप से दिखाई देती है।
3. कहानी संग्रह
  • सलाम: उनकी कहानियों में दलित समुदाय के जीवन के यथार्थ और सामाजिक अन्याय के खिलाफ आवाज़ दिखाई देती है। ये कहानियाँ संवेदनशील और आक्रोशपूर्ण होती हैं, जो पाठकों को गहराई से झकझोरती हैं।
4. नाटक और आलोचना
  • उन्होंने नाटकों और आलोचनात्मक लेखों के माध्यम से भी दलित चेतना को सशक्त किया।
  • उनके लेखन में समाज की गहराई से की गई समीक्षा और जातिवाद के खिलाफ सशक्त प्रतिरोध मिलता है।
5. संपादन कार्य
  • उन्होंने दलित साहित्य को व्यापक पहचान दिलाने के लिए विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं और संग्रहों का संपादन भी किया।
ओमप्रकाश वाल्मीकि का प्रभाव

उनके प्रमुख साहित्यिक योगदान इस प्रकार हैं:

उनकी रचनाएँ समाज में समतामूलक दृष्टिकोण के निर्माण में सहायक रहीं। उन्होंने दलित साहित्य को मुख्यधारा में स्थापित किया और समाज को सोचने पर मजबूर किया कि जातिवाद किस हद तक किसी व्यक्ति के जीवन को प्रभावित कर सकता है। उनका साहित्य केवल दलित वर्ग तक सीमित न रहकर, पूरी मानवता के लिए प्रेरणादायक है।

वाल्मीकि जी का साहित्यिक योगदान उनके साहस, प्रतिबद्धता और सच्चाई का प्रमाण है, जिसने हिंदी साहित्य को नई ऊँचाईयाँ दीं।

मंगलवार, 14 जनवरी 2025

कारक और परसर्ग

 


कारक
चिह्न
उदाहरण
कर्ता कारक
ने
1.       राम ने रोटी खाई।
2.       मैं घर जाता हूँ।
कर्म कारक
को
3.       राम ने रावण को मारा।
4.       मैंने आपको देखा।
करण कारक
से/के द्वारा
5.       वह कलम से लिखता है।
6.       वह बस से घर गया। 
सम्प्रदान कारक
को/ के लिए
7.       उसने राम को पैसे दिए।
8.       शिक्षक ने छात्रों को शिक्षा दी। 
अपादान कारक
से अलग
9.       गंगा हिमालय से निकलाती है।
10.   वह घर से आता है।
संबंध कारक
का
की
 के
 रा
री
रे
 ना
नी
ने
11.   यह राम का घर है।
12.   राम के पिता कल आयेंगे।
13.   यह उसकी कलम है।
14.   तुम्हारा नाम रेखा है।
15.   तुम्हरे घर में कौन-कौन है?
16.   तुम्हारी माँ कब आएँगी?
17.    तुम अपना काम करो।
18.   तुम अपनी कलम मुझे दो। 
19.    मैं अपने घर जाता हूँ।
अधिकरण कारक
में, पर
20.   हम कक्षा में हैं।
21.   वह हिमालय पर चढ़ता है।
संबोधन
हे, ऐ
22.   हे सीता ! तुम घर जाओ
23.   ऐ लड़के इधर आओ।