सोमवार, 21 जुलाई 2025

बालम आवो हमारे गेह रे

 


बालम, आवो हमारे गेह रे। तुम बिन दुखिया देह रे।

सब कोई कहे तुम्हारी नारी, मोकों लागत लाज रे।

दिल से नहीं दिल लगाया, तब लग कैसा सनेह रे।

अन्न न भावै नींद न आवै, गृह-बन धरै न धीर रे।

कामिन को है बालम प्यारा, ज्यों प्यासे को नीर रे।

है कोई ऐसा पर-उपकारी, पिव सों कहै सुनाय रे।

अब तो बेहाल कबीर भयो है, बिन देखे जिव जाय रे॥

अरे इन दोहुन राह न पाई...


अरे इन दोहुन...

अरे इन दोहुन राह न पाई।
हिंदू अपनी करै बड़ाई गागर छुवन न देई। बेस्या के पायन-तर सोवै यह देखो हिंदुआई।
मुसलमान के पीर-औलिया मुर्गी मुर्गा खाई। खाला केरी बेटी ब्याहै घरहिं में करै सगाई।
बाहर से इक मुर्दा लाए धोय-धाय चढ़वाई। सब सखियाँ मिलि जेंवन बैठीं घर-भर करै बड़ाई।
हिंदुन की हिंदुवाई देखी तुरकन की तुरकाई। कहैं कबीर सुनो भाई साधो कौन राह ह्वै जाई॥