महादेवी वर्मा का जन्म उत्तर प्रदेश के फर्रूखाबाद जिले में हुआ था । उनके जीवन का अधिकांश समय इलाहाबाद में बीता था । वे प्रयाग महिला विद्यापीठ में अध्यापिका थीं। उनका विवाह बचपन में ही हो गया था, लेकिन वे जीवन-भर अविवाहित की तरह रहीं । माहदेवी वर्मा साहित्यकार के साथ-साथ कुशल चित्रकार भी थीं । वे संगीत में भी निपुण थीं । उन्होंने अनेक रचाओं के अनुवाद भी किए हैं ।
महादेवी वर्मा छायावाद की महत्त्वपूर्ण कवयित्री थीं । उन्होंने छायावाद युग में कविताएँ लिखी हैं । प्रकृति के प्रति प्रेम और कल्पना छायावादी कविता की विशेषता है । यह विशेषता जयशंकर प्रसाद, निराला और पंत तीनों कवियों में है । तीनों ही प्रकृति की सुंदरता पर मोहित हैं । उनका प्रक्रिति से प्रेम कभी-कभी रहस्यवाद तक पहुँच जाता है । वे प्रकृति में ब्रह्म (ईश्वर) का आभास (अनुभव) पाने लगते हैं। इसलिए उनके प्रकृति–प्रेम की कविताएँ रहस्यवादी हो जाती हैं । यह रहस्यवाद उनकी कविता की एक पहचान है । महादेवी वर्मा की कविता का मुख्य विषय रहस्यवाद है । वे इस प्रकृति में अज्ञात शक्ति (ईश्वर) की कल्पना करती हैं । उनकी कवितओं में प्रकृति की क्रियाओं को उसी का संदेश सुना गया है ।
महादेवी वर्मा ने अप्रत्यक्ष सत्ता से प्रेम की कविताएँ लिखीं । उनका प्रेमी इस दुनिया से दूर कहीं कहीं इस प्रकृति के उसपार है । उहोंने अपनी कविताओं में इस विरह को ही विषय बनाया । उनकी कविताएँ प्रेम की पीड़ा (दुःख) की कविताएँ हैं । इसलिए उनपर बुद्ध के दुःखवाद प्रभाव माना जाता है । महादेवी वर्मा को आधुनिक काल की मीरा कहा गया है ।
महादेवी वर्मा ने गद्य में भी रचनाएँ कीं । उनके संस्मरण और रेखाचित्र बहुत प्रसिद्ध हैं । उनके गद्य-लेखन में उनकी स्त्री-चेतना दिखाई पड़ती है । उन्होंने अपने जीवन में भी स्त्री-शिक्षा और स्त्री-शिक्षा के लिए काम किए ।
महादेवी वर्मा को उनके काव्यसंग्रह ‘यामा’ के लिए ज्ञानपीठ पुरस्कार दिया गया । यह भारतीय साहित्य का सबसे पुरस्कार है ।