अंतरा-1 लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं
अंतरा-1 लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं

शुक्रवार, 11 दिसंबर 2020

नागार्जुन

 


नागार्जुन का जन्म बिहार राज्य के मधुबनी जिले में हुआ था। उनका नाम वैद्यनाथ मिश्र था । उनकी आरंभिक शिक्षा संस्कृत में हुई । उसके बाद की शिक्षा उन्होंने स्वयं पढ़कर प्राप्त की । अपने बचपन से ही उन्होंने आस-पास की अनेक यात्राएँ की थीं । इसीलिए उन्होंने मैथिली भाषा में यात्री उपनाम से कविताएँ लिखी हैं ।

            राहुल सांकृत्यायन द्वारा पालि भाषा से अनुदित  संयुक्तनिकाय पुस्तक पढ़कर उनको पालि सीखने की इच्छा हुई । इसके लिए वे श्रीलंका गए । उन्होंने वहाँ पालि भाषा सीखी और  बौद्ध भिक्षुओं को संस्कृत पढ़ाने लगे ।

श्रीलंका में उनपर बौद्ध धर्म का प्रभाव पड़ा और उन्होंने बौद्ध धर्म स्वीकार कर लिया । वे बौद्ध दार्शनिक नागार्जुन से बहुत प्रभावित थे । इसलिए उन्होंने अपना नया नाम नागार्जुन रखा ।  नागार्जुन ने हिंदी और मैथिली दोनों भाषाओं में कविताएँ लिखी हैं । उन्होंने अपना उपनाम हिंदी की कविताओं के लिए नागार्जुन और मैथिली में यात्री रखा है । 

·       नागार्जुन प्रगतिशील कवि हैं । प्रगतिशील कविता का संबंध मार्क्स के विचारों से है । इन कविताओं में मजदूरोंकिसानों और गरीबों की बात की गई है । नागार्जुन ने भी अपनी कविताओं में इन के लोगों के बारे में लिखा है ।

·       नागार्जुन की सामाज और राजनीतिक से संबंधित विषयों पर कविताएँ लिखी हैं । उन्होंने बिहार के किसान आंदोलन में भी भाग लिया था ।

·       नागार्जुन ने सामान्य जनता के जीवन और उसके सुख-दुःख को कविता का विषय बनाया है ।

·       नागार्जुन ने कविता में कल्पना की जगह यथार्थ को महत्त्व दिया है और सुंदरता को सामान्य जीवन में देखने की कोशिश की है ।

·       नागार्जुन की कविताओं की भाषा सरल है । 

कुछ कविताएँ :

कई दिनों तक चूल्हा रोया चाकी रही उदास

कई दिनों तक कानी कुतिया सोई उसके पास

कई दिनों तक लगी भीत पर छिपकलियों की गस्त

कई दिनों तक चूहों की भी हालत रही शिकस्त

—नागार्जुन, अकाल के बाद

गुरुवार, 19 नवंबर 2020

महादेवी वर्मा


महादेवी वर्मा का जन्म उत्तर प्रदेश के फर्रूखाबाद जिले में हुआ था । उनके जीवन का अधिकांश समय इलाहाबाद में बीता था । वे प्रयाग महिला विद्यापीठ में अध्यापिका थीं। उनका विवाह बचपन में ही हो गया था, लेकिन वे जीवन-भर अविवाहित की तरह रहीं । माहदेवी वर्मा साहित्यकार के साथ-साथ कुशल चित्रकार भी थीं । वे संगीत में भी निपुण थीं । उन्होंने अनेक रचाओं के अनुवाद भी किए हैं ।

महादेवी  वर्मा छायावाद की महत्त्वपूर्ण कवयित्री थीं । उन्होंने छायावाद युग में कविताएँ लिखी हैं ।  प्रकृति के प्रति प्रेम और कल्पना छायावादी कविता की विशेषता है ।  यह विशेषता जयशंकर प्रसाद, निराला और पंत तीनों कवियों में है । तीनों ही प्रकृति की सुंदरता पर मोहित हैं ।  उनका प्रक्रिति से प्रेम कभी-कभी रहस्यवाद तक पहुँच जाता है । वे प्रकृति में ब्रह्म (ईश्वर) का आभास (अनुभव) पाने लगते हैं। इसलिए उनके  प्रकृति–प्रेम की कविताएँ रहस्यवादी हो जाती हैं । यह रहस्यवाद उनकी कविता की एक पहचान है । महादेवी वर्मा की कविता का मुख्य विषय रहस्यवाद है । वे इस प्रकृति में अज्ञात शक्ति (ईश्वर) की कल्पना करती हैं । उनकी कवितओं में प्रकृति की क्रियाओं को उसी का संदेश सुना गया है ।

महादेवी वर्मा ने अप्रत्यक्ष सत्ता से प्रेम की कविताएँ लिखीं । उनका प्रेमी इस दुनिया से दूर कहीं कहीं इस प्रकृति  के उसपार है । उहोंने अपनी कविताओं में इस विरह को ही विषय बनाया । उनकी कविताएँ प्रेम की पीड़ा (दुःख) की कविताएँ हैं । इसलिए उनपर बुद्ध के दुःखवाद प्रभाव माना जाता है । महादेवी वर्मा को आधुनिक काल की मीरा कहा गया है ।

महादेवी वर्मा  ने गद्य  में भी रचनाएँ कीं । उनके संस्मरण और रेखाचित्र बहुत प्रसिद्ध  हैं ।  उनके गद्य-लेखन में उनकी स्त्री-चेतना दिखाई पड़ती है । उन्होंने अपने जीवन में भी स्त्री-शिक्षा और स्त्री-शिक्षा के लिए काम किए ।

महादेवी वर्मा को उनके काव्यसंग्रह यामा के लिए ज्ञानपीठ पुरस्कार दिया गया । यह भारतीय साहित्य का सबसे पुरस्कार है ।

 

बुधवार, 7 अक्तूबर 2020

कबीर


 कबीर

संत कबीर का जन्म बनारस में संवत् 1455 (1398 ई.) में हुआ था । इन्हें नीरू और नीमा नाम के जुलाहा दंपति ने पाला था । कबीर जुलाहे का काम करते थे । वे ज्ञानमार्गी/ज्ञानश्रयी कवि थे । कबीर अशिक्षित (मसि कागद छूयो नहीं  कलम गही नहिं हाथ) । 

कबीर की वाणी का संकलन बीजकमें है । इसके तीन खंड हैं1. साखी, 2. सबद 3. रमैनी।

कबीर के विचार  :

1.      कविता के बारे में – तुम जिन जानो गीत है वह निज ब्रह्म विचार।

2.      निर्गुण ब्रह्म के बारे में  जाके मुख माथा नहीं नाहीं रूप कुरूप।

पुहुप बास तैं पातरा ऐसो तत्त अनूप ।

3.      ब्रह्म को प्रेमी माना और अपने को प्रेयसी हिरि मोरे पिउ मैं राम की बहुरिया।

4.      प्रेम को महत्व कबीर यह घर प्रेम का खाला का घर नहिं।

5.      मूर्ति-पूजा का विरोध  पाहन पूजे हरि मिलें तौ मैं पूजूँ पहार।

6.      हिंदू-मुस्लिम एकता  हिंदू मुए राम कहि मुसलमान खुदाई।

7.      गुरु का महत्व गुरु गोबिंद दोऊ खड़े काके लागूँ पाँय।

बुधवार, 15 अप्रैल 2020

हिंदी काव्य : एक रेखांकन

 

हिंदी साहित्य का आरंभ

हिंदी साहित्य की शुरुआत की एक निश्चित तिथि नहीं बताई जा सकती, लेकिन इसका आरंभ सन् 1000 ई. के आसपास मानी जा सकती  है । तब से लेकर अब तक लगभग एक हजार साल में हिंदी का साहित्य लगातार आगे बढ़ता रहा है । इसमें कई तरह के बदलाव आये । इन बदलावों के आधार पर हिंदी साहित्य को अलग-अलग कालों में बाँटा गया है । इन कालों की सही समय-सीमा और नामकरण को लेकर विद्वानों अलग-अलग विचार हैं । इनमें आचार्य रामचंद्र शुक्ल का काल-विभाजन अधिक मान्य है ‌‌। उनके अनुसार—

1.      आदिकाल (वीरगाथाकाल) : संवत् 1050 से 1375 तक  ( सन् 993 ई. से  सन्1318 ई. )

2.      पूर्वमध्यकाल (भक्तिकाल)  : संवत् 1375 से संवत् 1700 तक ( सन् 1318 ई. से  सन्1643 ई. )

3.      उत्तरमध्यकाल ( रीतिकाल) : संवत् 1700 से संवत् 1900 तक ( सन् 1643 ई. से  सन् 1843 ई. )

4.      आधुनिक काल ( गद्यकाल) : संवत् 1900 से अब तक ( सन् 1843 ई. से  अबतक)

आदिकाल (वीरगाथाकाल )

संवत् 1050 से 1375

आदिकाल हिंदी भाषा में साहित्य लिखने की शुरुआत का समय है । हिंदी भाषा से पहले साहित्य की भाषा अपभ्रंश थी। इसमें आठवीं शताब्दी के आस पास से साहित्य-रचनाएँ मिलने लगती हैं । चंद्रधर शर्मा गुलेरी ने इसे पुरानी हिंदी कहा है । लेकिन हिंदी साहित्य के आदिकाल का वास्तविक समय संवत् 1050 से 1375 तक माना जाता है। इस समय तीन तरह के साहित्य लिखे गये –

1.      धार्मिक काव्य

2.      वीरगाथा काव्य

3.      स्वतंत्र काव्य

धार्मिक काव्य – इस समय भारत में कई तरह के धार्मिक विचार थे । इनमें से सिद्ध, नाथ और जैन तीन मुख्य थे। आदिकालीन हिंदी में इन तीनों से जुड़ी धार्मिक  रचनाएँ  मिलती हैं । इनमें साहित्य की जगह धार्मिक विचार अधिक प्रभावी  हैं । इन कवियों ने अपनी कविताओं में अपने-अपने धर्मों की शिक्षा दी है। ये धार्मिक विचार की कविताएँ हैं। ये विचार दोहा, चरित काव्य और चार्यापदों में रचे गए हैं । इनमें से मुख्य कवि हैं—

धार्मिक मत

कवि

काव्य

सिद्ध

सरहपा

दोहाकोश

जैन

स्वयंभू

मेरुतुंग

हेमचंद्र

पउम चरिउ (राम-कथा)

प्रबंध चिंतामणि

प्राकृत व्याकरण

नाथ

गोरख नाथ

गोरखबानी

 

जैन काव्य की विशेषताएँ :

1.      जैन काव्य जैन धर्म से प्रभावित है ।

2.      जैन धर्म के महापुरुषों के जीवन को विषय बनाकर चिरित काव्य लिखे गए; जैसे- पउम चरिउ, जसहर चरिउ, करकंडु चरिउ,भविसयत कहा आदि ।

3.      जैन कवियों ने व्याकरण-ग्रंथ भी लिखे ; जैसे- प्राकृत व्याकरण, प्रबंधचिंतामणि, सिद्धहेम शब्दानुशासन आदि ।

4.      कड़वक बंध रचनाएँ और चौपई छंद जैन कवियों की देन है ।

5.      हिंदी का पहला बारहमासा वर्णन जैन साहित्य में मिलता है ।

वीरगाथा काव्य– इस समय भारत में एक केंद्रीय सत्ता की कमी थी। देश कई छोटे-छोटे राज्यों में बँटा था और प्रत्येक राजा दूसरे राजा से राज्य छीनना चाह रहा था और अपने राज्य का विस्तार करना चाहता था। इसलिए वे आपस में लड़ रहे थे। इन राजाओं के राज्य में रहने वाले कवियों ने अपने राजाओं की वीरता का वर्णन  किया है । इस लिए इन्हें वीरगाथा काव्य कहा जाता है। इन कविताओं का विषय लड़ाइयों का वर्णन है। चंदबरदाई का पृथ्वीराज रासो और जगनिक की परमाल रासो इनमें सबसे अधिक प्रसिद्ध है।

स्वतंत्र काव्य – जिन कवियों ने धार्मिक काव्य और वीरगाथा काव्य नहीं लिखे । उनकी कविताएँ इन दोनों प्रकार के काव्यों से अलग हैं , उन्हें स्वतंत्र कवि कहा जा सकता है; जैसे विद्यापति और अमीर खुसरो 

1.      विद्यापति (14 वीं शताब्दी) — इनके तीन प्रसिद्ध काव्य कीर्तिलता’, कीर्तिपताका और पदावली हैं। कीर्तिलता और कीर्ति पताका का संबंध राजा कीर्ति सिंह से है। विद्यापति उन्हीं के यहाँ रहते थे। पदावली में राधा और कृष्ण के प्रेम का वर्णन है। इसमें उन दोनों का प्रेम एक सामान्य युवक और युवती के प्रेम जैसा है। विद्यापति के इस काव्य का सबसे अधिक महत्त्व है।

2.      अमीर खुसरो (14 वीं शताब्दी) —  खुसरो फारसी के कवि थे। उन्होंने हिंदी में भी रचनाएँ कीं। उनकी पहेलियाँ, मुकरियाँ, दो सुखने प्रसिद्ध हैं। खुसरो  की रचनाओं की भाषा आधुनिक काल की हिंदी के करीब है। इसलिए इनका ऐतिहारिक महत्त्व है।

3.      अद्दहमाण / अब्दुल रहमान (13वीं शताब्दी)- संदेश रासक (शृंगार काव्य)

4.      रोडा- राउड बेलि (शृंगार काव्य)

5.      लक्षमीधर - प्राकृत पैंगलम्

आदिकाल की सामान्य विशेषताएँ :

1.      इस काल में वीर-काव्य लिखे गए।

2.      इस काल के कवि राजाओं के दरबारी कवि थे और उन्होंने अपने राजाओं की प्रशस्तिमें कविताएँ लिखीं।

3.      आदिकाल में वीर के साथ-साथ कुछ शृंगार (प्रेम) की रचनाएँ की भी मिलती हैं; जैसे-  नरपति नाल्ह की बीसलदेव रासो  और विद्यापति की पदावली

4.      जैन और सिद्ध कवियों ने अपने धार्मिक विचार के प्रचार के लिए साहित्य का आधार बनाया है। जसहर चरिउ’, रिठ्ठणेमि चारिउ आदि ।

5.      इन रचनाओं की भाषा अपभ्रंश मिली-जुली हिंदी (डिंगल- पिंगल और अवहट्ट) है।

6.       खुसरो की रचनाओं तथा उक्तिव्यक्ति प्रकरण से आधुनिक हिंदी भाषा का पूर्वानुमान मिलने लगता है।

7.      चरित, दोहा और पद— जैसे नए काव्य-रूप का प्रयोग किया, जो बाद में अधिक लोकप्रिय हुए ।