(सन् 1850 से 1900 ई.)
भारतेंदु युग का नामकरण भारतेंदु हरिश्चंद्र के नाम पर
किया गया । यह आधुनिक हिंदी साहित्य का पहला युग है । इस युग में कविता के साथ-साथ
गद्य का भी विकास हुआ। गद्य खड़ी बोली खड़ी
बोली में लिखा गया, लेकिन कविता ब्रजभाषा में ही
लिखी गई। भारतेंदु युग में रीति काल की राधा-कृष्ण भक्ति की कविताओं का
विस्तार दिखाई देता है । राज-भक्ति के साथ
देशभक्ति की कविताएँ लिखी गईं । ब्रिटिश सरकार की आर्थिक नीतियों की आलोचना की गई
। भारतेंदु युग की कविता में स्वचेतनता की प्रवृत्ति दिखाई देती है । भारत की
सामाजिक स्थिति पर कविताएँ लिखी गईं । कविताएँ-
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कठिन सिपाही द्रोह अनल जल बल
सों नासी।
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अँग्रेज राज सुख साज सबै है
भारी।
पै सब धन विदेस चलि जात यहै है ख्वारी॥
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निज भाषा उन्नति अहै, सब उन्नति को मूल।
बिनु निज भाषा ज्ञान के मिटत न हिय को सूल ॥