उल्टा पिरामिड शैली समाचार लेखन की एक विधि है जिसमें सबसे महत्वपूर्ण जानकारी पहले दी जाती है, उसके बाद महत्व के घटते क्रम में कम महत्वपूर्ण जानकारी आती है. इस शैली को "न्यूज-गेदरिंग" या "लीड" भी कहते हैं, क्योंकि इसमें कौन, क्या, कब, कहाँ, क्यों और कैसे (5W और H) जैसे सवालों के जवाब तुरंत मिल जाते हैं. इस शैली का उपयोग सुनिश्चित करता है कि पाठक कम समय में भी मुख्य बिंदु जान जाए, भले ही वह पूरा लेख न पढ़े.
गुरुवार, 4 सितंबर 2025
उल्टा पिरामिड
उल्टा पिरामिड शैली समाचार लेखन की एक विधि है जिसमें सबसे महत्वपूर्ण जानकारी पहले दी जाती है, उसके बाद महत्व के घटते क्रम में कम महत्वपूर्ण जानकारी आती है. इस शैली को "न्यूज-गेदरिंग" या "लीड" भी कहते हैं, क्योंकि इसमें कौन, क्या, कब, कहाँ, क्यों और कैसे (5W और H) जैसे सवालों के जवाब तुरंत मिल जाते हैं. इस शैली का उपयोग सुनिश्चित करता है कि पाठक कम समय में भी मुख्य बिंदु जान जाए, भले ही वह पूरा लेख न पढ़े.
छह ककार
किसी समाचार को लिखते हुए मुख्यतः छह सवालों का जवाब देने की कोशिश की जाती है क्या हुआ, किसके साथ हुआ, कहाँ हुआ, कब हुआ, कैसे और क्यों हुआ? इस-क्या, किसके (या कौन), कहाँ, कब, क्यों और कैसे को छह ककारों के रूप में भी जाना जाता है। किसी घटना, समस्या या विचार से संबंधित खबर लिखते हुए इन छह ककारों को ही ध्यान में रखा जाता है।
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ककार |
समाचार के मुखड़े (इंट्रो) यानी पहले पैराग्राफ़ या शुरुआती दो-तीन पंक्तियों में आमतौर पर तीन या चार ककारों को आधार बनाकर खबर लिखी जाती है। ये चार ककार हैं-क्या, कौन, कब और कहाँ? इसके बाद समाचार की बॉडी में और समापन के पहले बाकी दो ककारों-कैसे और क्यों का जवाब दिया जाता है। इस तरह छह ककारों के आधार पर समाचार तैयार होता है। इनमें से पहले चार ककार-क्या, कौन, कब और कहाँ सूचनात्मक और तथ्यों पर आधारित होते हैं जबकि बाकी दो ककारों-कैसे और क्यों में विवरणात्मक, व्याख्यात्मक और विश्लेषणात्मक पहलू पर जोर दिया जाता है।
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मात्रिक छंद
चोपाई : यह एक सम मात्रिक छन्द है। इसमें बार चरण होते हैं। प्रायेक चरण में १६ मात्राएँ होती है तथा अन्त में जगण (151) या सगणः (551) न रखने का विधान है। चौपाई के चरणान्त में (51) गुरु लघु नहीं होना चाहिए। इस छंद के दो चरणों को मिलाकर एक अर्धाली बनती है ।
उदाहरण
SIISII SI।।।।।१६।।। 11=१६ कंकन-किकिनि नूपुर घुनि सुनि। कहुत लबन सन राम हृदय गुनि ।। SIIIII SI555 = १६। 15511111155-१६ मानह मदन बुंदुभी दीन्ही । मनसा विस्व-विजय कहें कीन्ही ।।
दोहा : यह एक अर्ध सम मात्रिक छंद है। इसके सम चरणों (दूसरे व बौथे चरणों) में ११-११ मात्राएँ और विषम चरणों (प्रथम व तृतीय चरणों) में १३-१३ मात्राएँ होती हैं। इस प्रकार १३+११, १३+११ मात्राओं के क्रम से इसके चार चरणों का संयोजन होता है। दोहा के विषम चरणों के प्रारंभ में जगण (1S1) नहीं होना चाहिए और अन्त में (SI) गुरु लघु मात्रा के साथ सम चरणों को समाप्त होना चाहिए। अन्त में (SI) गुरु लघु का क्रम आवश्यक होता है।
उदाहरण-
11111151।।।।१३।11111151=११
रहिमन अंसुवा नयन करि, जिय दुख प्रगट करेइ ।
SIISS S। 5-१३।।।5।।।51 ११
जाहि निकारो गेह ते कस न भेद कहि देइ ।।
सोरठा : सोरठा को दोहा का उल्टा माना जाता है। दोहा के विषम बरणों (प्रथम व तृतीय) में ११-११ मात्राएँ तथा सम चरणों (द्वितीय और चतुर्थ) में १३-१३ मात्राएँ होती हैं। इस छंद में विषम चरणों के अन्त में तुक मिलता है।
उदाहरण-
111151151 = ११ ||5|| । ।। ऽ १३
लिखकर लोहित लेख, हब गया दिनमणि अहा ।
SISITISI-११ 51111।ऽऽ १३
ब्योम-सिन्धु सखि देख, तारक बुद बुद दे रहा ।।