मुख्यार्थ को छोड़ कर उससे संबंधित और संगत अर्थ को संकेतित करने वाली शब्द शक्ति लक्षणा है। पूर्वोक्त अभिमान में बना' वाक्य में 'डबना शब्द का अर्थ 'भरा होना लक्षणा शक्ति का ही परिणाम है। 'डबना का मुख्य अर्थ जब बाधित हो गया तब लक्षणा ने अपना कार्य किया और उसने लक्ष्यार्थ को सूचित किया।
जब वक्ता मुख्यार्थ या वाच्यार्थ से अपने भाव को पूरी तरह व्यक्त नहीं कर पाता, तब वह लक्षणा शक्ति का उपयोग करता है। इस प्रकार 'लक्षणा' के लिए तीन शर्ते मान्य है ।
१. मुख्यार्थ बाध,
२. मुख्यार्थ सम्बन्ध,
३. प्रयोजन रूढ़ि
लक्षणा के भेष : मुख्यार्थ बाघ होने पर उससे संबद्ध दूसरा संगत अर्थ जव
किसी धर्म या गुण के आधार पर व्यक्त होता है, तब गौणी लक्षणा होती है। 'चौकन्ना होना' में 'चौकन्ना' शब्द का मुख्यार्थ है- 'चार कानों वाला' । इसका लक्ष्यार्थ 'सावधान' है। इन दोनों अर्थों पर ध्यान देने पर स्पष्ट होता है कि मुख्यार्थ के बाधित होने पर भी उसका लक्ष्यार्थ से सादृश्य संबंध है। इसीलिए यहाँ गोणी लक्षणा है।
हम पुलिस को देखकर कहते हैं कि 'लाल पगड़ी' जा रही है। यहाँ 'लाल पगड़ी' शब्द का मुख्यार्थ बाधित हो गया है। उसका पुलिस अर्थ हमे लक्षणा शक्ति से ज्ञात हुआ है। 'लाल पगड़ी' और 'पुलिस' में किसी धर्म या गुण की समानता नहीं है। 'लाल पगड़ी' तो धारण की जाने वाली एक बस्तु है। पुलिस उसे धारण करने वाला व्यक्ति है। इस प्रकार यहाँ गुण-सादृश्य सम्बन्ध न होकर दूसरे प्रकार का सम्बन्ध उपस्थित है। ऐसी स्थिति में 'लाल पगड़ी' का लक्ष्यार्थ 'पुलिस' सूचित करने वाली शक्ति को शुद्ध लक्षणा वहते हैं।
लक्षणा को प्रयोजन और उसकी रूढ़ स्थिति के आधार पर दो श्रेणियों में बाँटा गया है- (१) रूढ़ि लक्षणा (२) प्रयोजनवती लक्षणा । रूढ़ि लक्षणा में रूढ़ि के अनुसार लक्षणा होती है। रूढ़ि का अर्थ प्राचीन प्रयोग समझना चाहिए । एक उदाहरण लीजिए -
'तैमूर के आक्रमण का समाचार सुनकर सारा देश भयभीत हो उठा' । यहाँ 'सारा देश' का अर्थ 'सम्पूर्ण देशवासी' है। प्राचीन प्रयोग में ही 'देश' का 'देशवासी' अर्थ रूढ़ हो उठा है। यह अर्थ लक्ष्यार्थ होते हुए भी रूढ़ है। इस-लिए यहाँ 'रूढ़ि लक्षणा' है ।
जब लक्षणा शक्ति का उपयोग प्रयोजन के अनुसार किया जाता है, तब 'प्रयोजनवती लक्षणा' सिद्ध होती है। काशी नगरी गंगों पर दसी हैं' में 'गंगा
साहित्य-शास्त्र परिचय
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पर' का सामान्य अर्थ 'गंगा की धारा पर' होता है, किन्तु कोई नगरी नदी की धारा पर नहीं बस सकती । यहाँ 'गंगा पर' से प्रयोजन है 'गंगा तट पर', इसलिए प्रयोजनवती लक्षणा के कारण इसका अर्थ हुआ 'काशी नगरी गंगा के तट पर बसी है' ।
काव्य में दो वस्तुओं के बीच जब उपमा दी जाती है तब जिसकी उपमा दी जाती है उसे उपमेय और जिससे उपमा की जाती हैं उसे उपमान कहते हैं। उपमेय और उपमान दोनों का एक साथ कथन करने की क्रिया 'आरोप' कह-लाती है। ऐसी स्थिति में सारोपा लक्षणा मान्य होती है।
जब केवल उपमान का कथन होता है और इस रूप में उपमान उपमेया पर छा जाता है तब साध्यवसाना लक्षणा मानी जाती है। अध्यवसान का अर्थ है 'छ। जाना' । 'खेलते दो खंजन सुकुमार' में दो खंजन आँखों के उपमान हैं। इस कथन में उपमान तो कथित हुआ है पर उण्पेय का कथन नहीं है। इस लिए यहाँ 'साध्यवसाना लक्षणा' है ।
लक्षणा के विविध रूपों का अध्ययन करने के पश्चात् यह कहा जा सकता है कि लक्षणा के निम्नांकित भेद हैं-
1. गोणी लक्षणा और शुद्ध लक्षणा ।
२. रूढ़ि लक्षणा और प्रयोजनवती लक्षणा ।
३. सारोरा लक्षणा और साध्यवसाना लक्षणा ।
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