समय : ( 500 ई. पू. 1000 ई. )
(क) पालि ( ईसा पूर्व पाँचवीं शताब्दी से ईस्वी सन् की पहली शताब्दी तक )— बौद्ध साहित्य,
(ख)प्राकृत (पहली से छठवीं शताब्दी ईस्वी तक )— जैन साहित्य
(ग) अपभ्रंश ( छ्ठवीं शताब्दी से ग्यारहवीं शताब्दी ईस्वी तक)
· अपभ्रंश पूरे उत्तर और मध्य भारत में बातचीत की भाषा थी।
· इसमें जैन धर्म और व्याकरण के अनेक ग्रंथ मिलते हैं।
· इसके बाद के रूप को अवहट्ठ कहते हैं ।
· एक बड़े क्षेत्र में बोली जाने के कारण इसके कई रूप थे –
1. शौरशेनी- पश्चिमी हिंदी, पहाड़ी हिंदी (कुमाउँनी, गढ़वाली), राजस्थानी, गुजराती,
2. अर्द्ध मागधी- पूर्वी हिंदी
3. मागधी- बंगला, उड़िया, असमिया, बिहारी हिंदी
4. महाराष्ट्री- मराठी ।
5. ब्राचड़- सिंधी।
6. पैशाची- पंजाबी
अपभ्रंश की इन्हीं शाखाओं से आधुनिक भारतीय भाषाओं का जन्म हुआ।