रविवार, 29 जून 2025

कथा-साहित्य

 


कथा साहित्य की दो प्रमुख विधाएं हैं – उपन्यास और कहानी। उपन्यास में साहित्य के तीनों तत्त्वों – भाव, कल्पना और बोध का सम्यक्‌ नियोजन होता है। हिन्दी में उपन्यास-सेवन बहुत कुछ अंग्रेज़ी के प्रभावस्वरूप आरंभ हुआ। किन्तु धीरे-धीरे हिन्दी उपन्यास का अपना स्वतन्त्र रूप विकसित हुआ।


(क) उपन्यास : परिभाषा और परिचय

उपन्यास शब्द 'उप' + 'न्यास' से बना है। 'उप' का अर्थ समीप तथा 'न्यास' का अर्थ धारण है। अर्थात् उपन्यास शब्द का अर्थ हुआ – मानवनियत के पास रखी हुई कथा। यह वस्तु स्पष्टतः दीर्घ, कथात्मक, ऐसी कथा है जो विस्तृत होती है, जिसमें हमारे जीवन की प्रतिकृति हो, जिसमें संसार की कथा हमारी भाषा में कही गई हो। उपन्यास का सारांश यह है : बहुत आस्वाद्य तथा उपयोगी यह बृहत् गद्यवृत्तात्मक आख्यान, जिसमें किसी विशिष्ट सामाजिक प्रसंग में पात्रों और घटनाओं को मनोवैज्ञानिक चिन्तन द्वारा निर्मित किया गया हो। पाठ्यक्रम इस विद्या के संबंध में कथाओं को अपने विचार निरूपित रूप में प्रस्तुत किए हैं :


1. उपन्यास प्रमुखतः यथार्थवादी जीवन की काल्पनिक कथा है।

2. मैं उपन्यास को मानव चरित्र का चित्र मात्र समझता हूँ। मानव चरित्र पर प्रकाश डालना और उसके रहस्यों को खोलना ही उपन्यास का मूल तत्त्व है। .......चरित्र संरचना की समानता और भिन्नता-धर्मानुसार से भिन्नता और विभिन्न से अभिन्नता दिखाना उपन्यास का मुख्य कर्तव्य है। – मुंशी प्रेमचंद


3. उपन्यास कथाओं-घटनाओं में बंधा हुआ एक विस्तृत जीवन है, जिनमें अत्यन्त गंभीर विचार चित्रित किए जाते हैं। यह जीवन का प्रतिनिधित्व करता है। साहित्यिक व शास्त्रीय रचनाओं द्वारा मानव-चरित्र व जीवन का अध्ययन किया जाता है।


4. उपन्यास का रचनात्मक पहलू बहुत व्यापक होता है – चरित्र-निर्माण, वातावरण-चित्रण और घटनाक्रम-क्रम भी आवश्यक हैं।


5. उपन्यास में लेखक अनुभवों को अपनी कल्पना से प्रस्तुत करता है।


6. संवाद की सजीवता उपन्यास में आवश्यक होती है। संवाद का सार्थक होना चाहिए।


7. उपन्यास में चरित्र, वातावरण और घटनाएं सजीव होनी चाहिए।


8. उपन्यास का संबंध जन-जीवन से होना चाहिए।


9. भाषा, शैली, स्वाभाविकता, बोधगम्यता और रोचकता का ध्यान रखना आवश्यक होता है।


10. उपन्यास का उद्देश्य मनोरंजन के साथ-साथ सामाजिक, राजनीतिक, ऐतिहासिक यथार्थ को चित्रित करना है।


11. उपन्यास के प्रकार – ऐतिहासिक, राजनीतिक, सामाजिक, मनोवैज्ञानिक, सांस्कृतिक, चरित्र-प्रधान, घटना-प्रधान, वातावरण-प्रधान।


(ख) कहानी : परिभाषा और परिचय

कथा-साहित्य की सर्वाधिक लोकप्रिय विधा कहानी है। कहानी में कौतूहल तत्त्व की प्रधानता होती है। मनुष्य में कौतूहल की वृत्ति जन्मजात होती है, इसलिए वह कुछ जानने की दिशा में सक्रिय रहता है।


1. कहानी छोटी होती है और उसका उद्देश्य विशेष घटनाओं को केन्द्र बनाकर गूढ़ भावनाओं को प्रकट करना होता है।


2. कहानी में पात्र सीमित होते हैं और उसका स्वरूप एक घटना पर केन्द्रित रहता है।


3. कहानी की विशेषताएं – संक्षिप्तता, कौतूहल, प्रभाव, गम्भीरता, सजीवता, चरित्र-चित्रण, वातावरण-चित्रण, उद्देश्यमूलकता।


4. कहानी का मूल तत्व – एकल प्रभाव, एकता, स्पष्ट उद्देश्य।


5. कहानियों के भेद : चरित्र-प्रधान, घटना-प्रधान, वातावरण-प्रधान।


6. कहानीकारों का दृष्टिकोण – प्रेमचंद, राय कृष्णदास, जैनेन्द्र, यशपाल आदि ने विविध मत दिए हैं।


7. कहानी में मनोवैज्ञानिक सत्य और चरित्रगत विविधता को चित्रित करने की शक्ति होती है।


8. कहानी को प्रभावशाली बनाने के लिए संवाद, भाषा और शैली का ध्यान रखना आवश्यक होता है।

शनिवार, 28 जून 2025

साहित्य का स्वरूप

मानव में सौंदर्य-भावना या विकास करने और उसे कल्याण की ओर अग्रसर करने वाली कला को साहित्य कहते हैं। ‘साहित्य’ शब्द 'सहित' में प्रयुक्त ‘सहित’ का अर्थ है – 'हित के साथ'।

साहित्य के तीन भेद विद्वानों ने किए हैं –

(1) श्रव्य साहित्य

(2) दृश्य साहित्य

(3) चित्र साहित्य

इन इन्द्रियों और भाषिक रूपों के तीनों रूपों को विवेचन करने के समाधान हेतु स्वीकार किया गया है।

साहित्य में शब्द और अर्थ, भाव और शैली भाव-साधन रहते हैं। उन सबमें हित-अर्थ अथवा कल्याण का भाव निहित रहता है।

साहित्य समाज का प्रतिबिंब




धर्म और समाज की दृष्टि से साहित्य का अत्यंत महत्वपूर्ण कार्य है।
एक ओर साहित्य समाज का अभिरुचि-विकास करता है और दूसरी ओर सामाजिक नैतिक मूल्यों की रक्षा करता है।
किसी भी देश की सभ्यता, संस्कृति का मूल्यांकन वहाँ के साहित्य से किया जाता है। जिस देश का साहित्य समृद्ध नहीं होता, वह देश अशक्त रहता है।

हर युग में साहित्य ने उस युग की प्रवृत्तियों को प्रकट किया है। साहित्यकार अपने युग का प्रवक्ता होता है।
उसका चिंतन एवं संवेदना समाज की परिस्थितियों पर आधारित होती है।
प्रसाद, दिनकर, बच्चन आदि की रचनाओं में विचार, भाव और शिल्प का परिमार्जन उनके युग की चेतना के अनुसार हुआ।

भारतीय कला में मानव-जीवन के भौतिक पक्ष में भी अध्यात्म अंतर्निहित है।
आज का वैज्ञानिक युग मानव को तकनीक से जोड़ तो रहा है, पर मानवता से दूर भी कर रहा है।
ईर्ष्या-द्वेष, स्वार्थ, हिंसा और वैमनस्य का वातावरण फैल रहा है।
ऐसे में साहित्य ही है जो मनुष्य को फिर से मानवीय संवेदनाओं से जोड़ता है।

रामराज्य की अवधारणा, संवेदना-प्रधान आदर्शों की पुनः स्थापना साहित्य कर सकता है।
आज साहित्य को उत्तरदायित्वपूर्ण भूमिका दी गई है— मानवीय मूल्यों की पुनः स्थापना करना।


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