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शनिवार, 23 नवंबर 2024

पूस जाड़ थरथर तन काँपा

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  यह काव्यांश:  पूस जाड़ थरथर तन काँपा। सुरुज जड़ाइ लंक विसि तापा। बिरह बाढ़ि भा दारुन सीऊ। कँपि-कँपि मरौं लेहि हरि जीऊ। कंत कहाँ हौं लागौं ...

गहन देवस घटा निसि बाढ़ी

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गहन देवस घटा निसि बाढ़ी। दूभर दु:ख सो जाइ किमि काढ़ी। अब धनि देवस बिरह भा राती। जर बिरह ज्यों बीपक बाती। काँपा हिया जनाबा सीऊ। तौ पै जाइ होइ...
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मेरे बारे में

संवत्सर
शिक्षक हूँ और शौकिया लेखन करता हूँ ।
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